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गोविंदगढ़ में दलित पिता-पुत्र से मारपीट: क्या दलितों पर बढ़ता अत्याचार सरकार की विफलता या साजिश?

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गोविंदगढ़ में दलित पिता-पुत्र से मारपीट: क्या दलितों पर बढ़ता अत्याचार सरकार की विफलता या साजिश?

स्थान: गोविंदगढ़, राजस्थान | तारीख: 19 अप्रैल 2025

राजस्थान के गोविंदगढ़ कस्बे में दलित समुदाय के पिता-पुत्र के साथ मारपीट की घटना ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या हमारे समाज में दलितों के प्रति नफरत और अत्याचार थमने का नाम नहीं ले रहे? घटना रेलवे फाटक के पास की है, जहां खरसनकी गांव के निवासी गोरधन पुत्र कन्हैया और पप्पूराम पुत्र गोरधन पर कुछ दबंगों ने हमला कर दिया।

Ambedkar Jayanti पर विवाद

सूत्रों के मुताबिक, 14 अप्रैल को अंबेडकर जयंती के अवसर पर गांव में शोभायात्रा निकाली गई थी, जिसे लेकर पहले से ही कुछ सवर्ण समाज के लोगों द्वारा विरोध किया जा रहा था। ग्रामीणों की समझाइश के बाद यात्रा निकली, लेकिन यह विरोध अब हिंसा में तब्दील हो गया है।

SC/ST एक्ट के तहत मामला दर्ज, पर क्या यह काफी है?

पीड़ित पक्ष ने गोविंदगढ़ थाने में शिकायत दर्ज कराई है। थाना अधिकारी बनेसिंह मीणा के अनुसार, SC/ST एक्ट सहित विभिन्न धाराओं में मामला दर्ज किया जा रहा है। लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या सिर्फ एफआईआर दर्ज करना पर्याप्त है, जब समाज के एक वर्ग पर लगातार हमले हो रहे हों?

समाज में बढ़ रहा दलित विरोध

यह कोई पहली घटना नहीं है। पिछले कुछ वर्षों में राजस्थान सहित पूरे भारत में दलित समुदाय के साथ हिंसा, भेदभाव और अत्याचार के मामले लगातार सामने आ रहे हैं। इससे लगता है कि संविधान में मिले समानता के अधिकार का ज़मीनी हकीकत से कोई मेल नहीं रह गया है।

क्या सरकार की चुप्पी साजिश नहीं है?

जब ऐसी घटनाएं बार-बार हों, और सरकार या प्रशासन की ओर से ठोस कार्रवाई ना हो, तो सवाल उठता है —

  • क्या यह प्रशासन की निष्क्रियता है या सोची-समझी साजिश?
  • दलित समाज की आवाज़ को दबाने की कोशिश तो नहीं?

समाधान क्या है?

  1. कानूनी कार्रवाई में तेजी: दोषियों की गिरफ्तारी और समय पर न्याय।
  2. राज्य SC/ST आयोग की जांच: स्वतंत्र जांच बैठाई जाए।
  3. जन चेतना और एकजुटता: दलित संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को संगठित होकर संघर्ष तेज करना होगा।
  4. मीडिया की भूमिका: ऐसी घटनाओं को उजागर करना मीडिया का कर्तव्य है।

दलित समाज पर अत्याचार सिर्फ सामाजिक नहीं, यह राजनीतिक और प्रशासनिक विफलता का भी प्रतीक है। अगर सरकारें और पुलिस तंत्र समय पर कार्रवाई नहीं करते, तो यह स्पष्ट संकेत है कि या तो वे असक्षम हैं या फिर इसमें कहीं ना कहीं मिलीभगत है। अब समय है कि दलित समाज संगठित होकर अपने अधिकारों की लड़ाई और तेज करे।

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