पेड़, पानी और जीवन: तेलंगाना के जंगल कटाई मामले में न्यायपालिका का सख्त रुख और 'पर्यावरण बचाओ' का संदेश

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पेड़, पानी और जीवन: तेलंगाना के जंगल कटाई मामले में न्यायपालिका का सख्त रुख और 'पर्यावरण बचाओ' का संदेश

पेड़, पानी और जीवन: तेलंगाना के जंगल कटाई मामले में न्यायपालिका का सख्त रुख और 'पर्यावरण बचाओ' का संदेश

हैदराबाद, तेलंगाना: हाल ही में तेलंगाना के हैदराबाद में सामने आए जंगल कटाई के एक बड़े मामले ने पर्यावरण प्रेमियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को झकझोर कर रख दिया। जानकारी के अनुसार, कुल 400 एकड़ जंगल में से लगभग 100 एकड़ क्षेत्र में अवैध कटाई की गई, जिससे पर्यावरणीय असंतुलन की आशंका बढ़ गई है। इस गंभीर मुद्दे पर देश की न्यायपालिका ने तत्काल हस्तक्षेप किया और पर्यावरण संरक्षण को सर्वोच्च प्राथमिकता देने का संदेश दिया।

न्यायपालिका ने दिखाई संवेदनशीलता

इस प्रकरण पर न्यायमूर्ति श्री गवई ने कहा, “लालच हमें विनाश की ओर ले जा रहा है। यदि हम पेड़, नदियाँ, तालाब और प्राकृतिक संसाधनों को नष्ट कर देंगे, तो मानव जीवन भी संकट में आ जाएगा।” उन्होंने यह स्पष्ट किया कि न्यायपालिका पर्यावरण संरक्षण के लिए पूर्ण रूप से प्रतिबद्ध है और ऐसे मामलों में सख्त कार्यवाही की जाएगी।

'बेटी बचाओ' से 'पर्यावरण बचाओ' तक – श्री श्याम सुंदर पालीवाल की प्रेरणा

इस मौके पर न्यायमूर्ति गवई ने श्री श्याम सुंदर पालीवाल का विशेष रूप से आभार व्यक्त किया। श्री पालीवाल ‘बेटी बचाओ’ आंदोलन के जनक माने जाते हैं, जिन्होंने राजस्थान के पिपलांत्री गांव में एक बेटी के जन्म पर 111 पेड़ लगाने की परंपरा शुरू की। अब उनका यह विचार ‘पर्यावरण बचाओ’ अभियान का आधार बन गया है।

NALSA की पर्यावरणीय जागरूकता में अहम भूमिका

राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA) भी इस दिशा में सक्रिय भूमिका निभा रहा है। श्री गवई ने बताया कि NALSA की टीम देश के हर कोने – मणिपुर से लेकर झारखंड तक – में जाकर लोगों को जागरूक कर रही है। पर्यावरण सुरक्षा, जल संरक्षण और हरित आवरण को बढ़ाने के लिए निरंतर कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं।

पर्यावरण संरक्षण क्यों है जरूरी?

भारत में तेजी से बढ़ते शहरीकरण, औद्योगीकरण और अनियंत्रित विकास के चलते जंगलों की कटाई, जल स्रोतों का प्रदूषण और जैव विविधता में गिरावट देखने को मिल रही है। ऐसे में न्यायपालिका, सामाजिक कार्यकर्ता और संस्थाएं मिलकर यदि प्रयास करें, तो यह संकट टल सकता है।



तेलंगाना के जंगल कटाई प्रकरण ने हमें यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि हम विकास की दौड़ में प्रकृति को पीछे छोड़ते जा रहे हैं। न्यायपालिका का यह हस्तक्षेप न सिर्फ कानून की सख्ती दिखाता है, बल्कि यह भी साबित करता है कि अब ‘पर्यावरण बचाओ’ एक राष्ट्रीय आंदोलन बन चुका है। हमें मिलकर यह सुनिश्चित करना होगा कि अगली पीढ़ी को एक हरा-भरा और स्वस्थ भारत मिले।



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