दलित सामाजिक कार्यकर्ताओं का दमन: राजस्थान में न्याय मांगने की सजा क्यों?

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दलित सामाजिक कार्यकर्ताओं का दमन: राजस्थान में न्याय मांगने की सजा क्यों?

दलित सामाजिक कार्यकर्ताओं का दमन: राजस्थान में न्याय मांगने की सजा क्यों?

सामाजिक कार्यकर्ता:- धर्मेंद्र कुमार जाटव
भीम आर्मी – आज़ाद समाज पार्टी

परिचय: न्याय की मांग अब अपराध?

राजस्थान के दौसा जिले के हरिपुरा राजकीय प्राथमिक विद्यालय (महवा) की मासूम छात्राओं के साथ एक अध्यापक द्वारा की गई कथित अश्लील हरकतों की खबर जब सामने आई, तो पीड़ित परिवारों की चुप्पी समझ में आती थी — वे डरे हुए थे, सहमे हुए थे। लेकिन जब हमने और अन्य सामाजिक कार्यकर्ताओं ने हिम्मत दिखाकर FIR दर्ज करवाई (FIR संख्या: 179/24, थाना बालाहेड़ी), तो यह शुरुआत थी एक लंबी, कठिन और निष्ठुर लड़ाई की।

FIR दर्ज कराना भी बना संघर्ष

स्थानीय पुलिस ने शुरुआत में परिवारों की मौजूदगी को अनिवार्य बताया और थर्ड पार्टी के हस्तक्षेप को ठुकरा दिया। डर के माहौल में भी, सभी पीड़ित परिवार सशरीर थाने आए और FIR दर्ज हुई। इसके बाद हमने FIR की कॉपी को CM व प्रशासनिक अधिकारियों तक पहुंचाने के उद्देश्य से फेसबुक पर सार्वजनिक किया।

FIR की कॉपी शेयर करना बना अपराध?

हमारा उद्देश्य था न्याय के लिए आवाज़ उठाना। लेकिन उसी राजस्थान पुलिस ने, थर्ड पार्टी की शिकायत पर, हम पर ही POCSO एक्ट के तहत दूसरी FIR दर्ज कर दी (FIR संख्या: 183/24)। यह कार्रवाई सिर्फ इसलिए की गई क्योंकि हमने सोशल मीडिया पर FIR की कॉपी साझा की थी — वो भी पीड़ित परिवार की सहमति से।

क्या दलित सामाजिक कार्यकर्ता होना ही अपराध है?

राजनीतिक संरक्षण पाए हुए अपराधी को गिरफ्तार करने में एक महीना लगा, जबकि हमारे खिलाफ तत्काल केस दर्ज किया गया। 12 दिन तक हमने DYSP ऑफिस महवा के सामने धरना दिया — कड़कड़ाती सर्दियों में। फिर जाकर अध्यापक को भगोड़ा घोषित किया गया। पुलिस अधिकारियों ने तब वादा किया था कि सामाजिक कार्यकर्ताओं पर दर्ज केस में FR (Final Report) लगाई जाएगी।

लेकिन अब वही पुलिस, वही प्रशासन, हम पर कार्यवाही का दबाव बना रहा है। पिछले 15 दिनों से मुझ पर गिरफ्तारी की तलवार लटकी है। क्या यही है न्याय की परिभाषा?


सामाजिक कार्यकर्ताओं के संवैधानिक अधिकार

भारत का संविधान नागरिकों को निम्नलिखित अधिकार देता है:

  1. अनुच्छेद 19(1)(a)अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता: FIR की कॉपी साझा करना अपराध नहीं, लोकतांत्रिक अधिकार है।
  2. अनुच्छेद 21जीवन व व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार: प्रताड़ना और मानसिक तनाव इसका उल्लंघन है।
  3. अनुच्छेद 14समानता का अधिकार: जब अपराधी को छूट और कार्यकर्ता को दंड, तो यह अधिकार कहां है?
  4. SC/ST (अत्याचार निवारण) अधिनियम – इस अधिनियम का पालन सिर्फ कागज़ों तक सीमित रह गया है?

क्या आवाज़ उठाना गुनाह है?

जब तक सामाजिक कार्यकर्ताओं की स्वतंत्रता को सुरक्षित नहीं किया जाएगा, तब तक शोषित समाज की लड़ाई अधूरी रहेगी। यदि FIR की कॉपी साझा करना, पीड़ित के समर्थन में धरना देना और न्याय की मांग करना अपराध है, तो इस देश में न्याय बचा क्या?

जनता की अदालत में मेरा सवाल है:

क्या हमें चुप हो जाना चाहिए?
या फिर सत्ता के अन्याय के विरुद्ध, संविधान की ताकत से लड़ते रहना चाहिए?

ताराचन्द खोयड़ावाल
संपादक:- प्रगति न्यूज़
संस्थापक:- मजदूर विकास फाउंडेशन

1 जनवरी 2025 को महवा (दौसा) में होगा महापड़ाव: भीम आर्मी?


सरकार की हठधर्मिता के कारण पीड़िताओं को नही मिल पा रहा है न्याय।












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