खैरथल में बाबासाहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर की 134वीं जयंती पर 7:55 PM पर केक काटकर श्रद्धांजलि — भीम आर्मी (आसपा) और मजदूर विकास फाउंडेशन ने किया संयुक्त आयोजन

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खैरथल में बाबासाहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर की 134वीं जयंती पर 7:55 PM पर केक काटकर श्रद्धांजलि — भीम आर्मी (आसपा) और मजदूर विकास फाउंडेशन ने किया संयुक्त आयोजन

खैरथल, अलवर | 14 अप्रैल 2025 — संविधान निर्माता और सामाजिक न्याय के महान योद्धा डॉ. भीमराव अम्बेडकर की 134वीं जयंती के अवसर पर खैरथल कस्बे के अम्बेडकर सर्किल पर आज शाम 7:55 बजे विशेष कार्यक्रम आयोजित किया गया। यह आयोजन भीम आर्मी (आज़ाद समाज पार्टी) एवं मजदूर विकास फाउंडेशन के संयुक्त तत्वावधान में सम्पन्न हुआ।

कार्यक्रम की शुरुआत केक काटने से हुई, जिसके माध्यम से बाबा साहब के विचारों और योगदान को श्रद्धांजलि दी गई। इस अवसर पर समाज के अनेक गणमान्य सामाजिक कार्यकर्ता एवं संगठन पदाधिकारी मौजूद रहे।

मुख्य रूप से उपस्थित रहे:

  • रामचंद्र कॉमरेड – पूर्व अध्यक्ष, जाटव समाज संस्थान
  • राजेन्द्र रसगोन – जिला अध्यक्ष, जाटव वेलफेयर सोसायटी
  • लक्ष्मीनारायण, छंगाराम, कुलदीप, सत्यवीर, रामनाथ मेघवाल – पदाधिकारी, भीम आर्मी (आसपा)
  • ताराचन्द खोयड़ावाल – संस्थापक, मजदूर विकास फाउंडेशन

इस आयोजन का उद्देश्य बाबा साहब के समानता, शिक्षा और आत्म-सम्मान के सिद्धांतों को समाज के सभी वर्गों तक पहुँचाना था। उपस्थित वक्ताओं ने बाबा साहब के सामाजिक आंदोलन, संविधान निर्माण में योगदान और दलित समाज के उत्थान के लिए किए गए कार्यों को याद किया।

अलग से केक काटकर आयोजन करने के पीछे कारण?
हालांकि यह कार्यक्रम पहले से घोषित आयोजन समिति से अलग आयोजित किया गया, जिससे समाज में कई सवाल उठे। कई लोगों ने इसे "सम्मान के लिए किया गया प्रतीकात्मक कार्यक्रम" बताया, वहीं कुछ ने इसे आपसी संवाद की कमी और सामाजिक असंतोष की अभिव्यक्ति के रूप में देखा।

समाज में उठे सवाल:

  • क्या आयोजन समिति में सबको प्रतिनिधित्व मिला?
  • क्या यह आयोजन एकता को तोड़ता है या सम्मान की नई परंपरा की शुरुआत है?
  • क्या भविष्य में सभी संगठनों को एकजुट होकर कार्यक्रम आयोजित नहीं करने चाहिए?

क्या है आगे की रणनीति?
समाज के युवाओं और संगठनों के बीच आपसी तालमेल और संवाद स्थापित करना समय की मांग है। वक्ताओं ने मिलकर चलने और बाबा साहब के मिशन को एकजुट होकर आगे बढ़ाने की बात कही।



बाबा साहब की जयंती सिर्फ एक उत्सव नहीं, बल्कि संविधान, सामाजिक न्याय और आत्म-सम्मान के विचारों को जीवित रखने का अवसर है। ऐसे आयोजन तभी सार्थक होंगे जब समाज में समरसता, संवाद और साझेदारी हो।


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