वाराणसी जेल प्रकरण: दलित महिला डिप्टी जेलर के आरोपों पर कार्रवाई नहीं, बल्कि तबादला!

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वाराणसी जेल प्रकरण: दलित महिला डिप्टी जेलर के आरोपों पर कार्रवाई नहीं, बल्कि तबादला!
उत्तर प्रदेश, में एक बार फिर जातिगत भेदभाव और महिला उत्पीड़न का मामला सामने आया है। वाराणसी जिला जेल में तैनात दलित महिला डिप्टी जेलर मीना कन्नौजिया ने जेल अधीक्षक पर अभद्रता, धमकी और शोषण के गंभीर आरोप लगाए थे। लेकिन इस मामले में निष्पक्ष जांच और कार्रवाई करने के बजाय सरकार ने 16 मार्च को उनका ही तबादला कर दिया। यह कदम केवल प्रशासनिक कार्रवाई नहीं, बल्कि एक दलित महिला अधिकारी के अधिकारों को दबाने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है।

क्या यह पहली बार हुआ है?

यह मामला कोई नया नहीं है। बताया जा रहा है कि इसी जेल अधीक्षक पर पहले भी एक अन्य महिला डिप्टी जेलर ने अभद्रता के आरोप लगाए थे, लेकिन उन आरोपों को भी नजरअंदाज कर दिया गया था। यह दर्शाता है कि प्रदेश में महिला अधिकारियों के साथ होने वाले अन्याय को लगातार अनदेखा किया जा रहा है। जब कानून के रखवाले ही कानून तोड़ने लगें और उन पर कोई कार्रवाई न हो, तो आम जनता के लिए न्याय की उम्मीद करना कठिन हो जाता है।

जातिगत भेदभाव और महिला उत्पीड़न का प्रतीक

मीना कन्नौजिया एक दलित महिला अधिकारी हैं, और उनके साथ हुआ यह व्यवहार यह दर्शाता है कि जाति और लिंग के आधार पर भेदभाव आज भी सिस्टम में गहराई से मौजूद है। यह केवल एक तबादला नहीं, बल्कि एक महिला अधिकारी को न्याय से वंचित करने का तरीका है। सवाल यह है कि अगर एक उच्च पदस्थ महिला अधिकारी को न्याय नहीं मिल सकता, तो प्रदेश की आम महिलाओं की सुरक्षा की क्या गारंटी है?

सांसद चंद्रशेखर आजाद का सवाल: क्या दलित और महिला अधिकारी न्याय की उम्मीद भी न करें?

नगीना से सांसद चंद्रशेखर आजाद ने इस मामले पर सरकार की चुप्पी पर सवाल उठाया है। उन्होंने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से पूछा है कि क्या दलित और महिला अधिकारी अब न्याय की उम्मीद भी नहीं कर सकतीं? जब सरकार के ही उच्च पदों पर बैठी महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं, तो आम जनता का क्या होगा?

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को जवाब देना होगा

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को इस मामले को संज्ञान में लेकर निष्पक्ष जांच करवानी चाहिए और दोषी अधिकारी के खिलाफ सख्त कार्रवाई करनी चाहिए। यह केवल मीना कन्नौजिया का मामला नहीं है, बल्कि पूरे प्रदेश में महिलाओं और दलित अधिकारियों की सुरक्षा और सम्मान का सवाल है।


उत्तर प्रदेश सरकार को यह स्पष्ट करना होगा कि वह महिला अधिकारियों और दलित समाज के प्रति कितनी गंभीर है। अगर इस मामले में न्याय नहीं मिलता है, तो यह संदेश जाएगा कि प्रदेश में महिलाएं और दलित अधिकारी सुरक्षित नहीं हैं और उनके साथ होने वाले अन्याय को सिस्टम का संरक्षण प्राप्त है। सरकार को तुरंत इस मामले की जांच कर दोषी अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करनी चाहिए, ताकि भविष्य में ऐसी घटनाएं न हों।

क्या उत्तर प्रदेश में कानून का राज है या जातिवाद और महिला विरोधी मानसिकता का बोलबाला?

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