भारत में दलित समुदाय के अधिकारों की रक्षा के लिए राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (NCSC) एक संवैधानिक संस्था के रूप में कार्य करता है। इसका मुख्य उद्देश्य अनुसूचित जातियों के साथ होने वाले भेदभाव और अत्याचारों की निगरानी करना, उनके अधिकारों की रक्षा करना और सरकार को आवश्यक सिफारिशें देना है। लेकिन हाल ही में इस आयोग की उपेक्षा की जा रही है, जिससे दलित समुदाय के अधिकारों पर सीधा प्रभाव पड़ रहा है।
आयोग में खाली पद: एक गंभीर चिंता
रिपोर्ट्स के अनुसार, राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के दो अहम पद पिछले एक साल से खाली पड़े हैं। यह स्थिति आयोग की प्रभावशीलता को कमजोर कर सकती है, क्योंकि बिना पूर्ण सदस्यों के यह संस्था अपनी जिम्मेदारियों को प्रभावी तरीके से नहीं निभा सकती। आयोग के पास अनुसूचित जातियों से संबंधित शिकायतों को सुनने, नीतियों पर सरकार को सलाह देने और जातिगत भेदभाव व अत्याचार के मामलों पर कार्रवाई की सिफारिश करने की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी होती है।
अगर यह महत्वपूर्ण पद खाली रहेंगे, तो सवाल उठता है कि दलित समुदाय की आवाज़ कौन सुनेगा? उनकी शिकायतों पर उचित कार्रवाई कौन करेगा? सरकार की निष्क्रियता से यह संकेत मिलता है कि वह इस आयोग को कमजोर करने की मंशा रखती है, जिससे दलितों के संवैधानिक अधिकार खतरे में पड़ सकते हैं।
संवैधानिक संस्थाओं को कमजोर करने की रणनीति?
संवैधानिक संस्थाओं की भूमिका एक लोकतांत्रिक देश में बेहद महत्वपूर्ण होती है। अगर सरकार ही इन संस्थाओं को कमजोर करने लगे, तो हाशिए पर मौजूद समुदायों के अधिकारों की रक्षा कैसे होगी? दलितों के खिलाफ अपराधों में लगातार वृद्धि हो रही है, ऐसे में NCSC का प्रभावी रूप से कार्य करना और भी आवश्यक हो जाता है।
भाजपा सरकार पर पहले भी कई बार दलित विरोधी मानसिकता अपनाने के आरोप लगे हैं। दलितों से जुड़ी नीतियों को लागू करने में देरी, दलित नेताओं की आवाज़ को दबाने के प्रयास और अब अनुसूचित जाति आयोग को कमजोर करने की स्थिति इस मानसिकता को और स्पष्ट करती है।
सरकार को तुरंत कदम उठाने होंगे
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार को इस मुद्दे पर तुरंत संज्ञान लेना चाहिए। आयोग के सभी खाली पदों को जल्द से जल्द भरा जाना चाहिए, ताकि यह संस्था अपनी जिम्मेदारी को प्रभावी रूप से निभा सके। इसके अलावा, सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि आयोग पूरी तरह स्वतंत्र और निष्पक्ष रूप से कार्य करे, ताकि दलित समुदाय की शिकायतों का सही तरीके से निपटारा हो सके।
अगर सरकार दलितों के अधिकारों के प्रति वाकई गंभीर है, तो उसे इस संवैधानिक संस्था को मजबूत करना चाहिए, न कि इसे उपेक्षित छोड़ना। वरना यह स्पष्ट संदेश जाएगा कि सरकार दलितों के अधिकारों की रक्षा करने में असफल हो रही है या फिर वह ऐसा करना ही नहीं चाहती।
निष्कर्ष
राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग की उपेक्षा दलितों के संवैधानिक अधिकारों पर सीधा हमला है। सरकार को यह समझना होगा कि संवैधानिक संस्थाओं की मजबूती ही एक समतावादी समाज की नींव होती है। अगर दलितों की आवाज़ को सुनने वाला आयोग ही निष्क्रिय कर दिया जाए, तो उनकी शिकायतों और समस्याओं का हल कैसे निकलेगा? इसलिए, सरकार को बिना किसी देरी के इस आयोग के सभी खाली पदों को भरना चाहिए और इसे स्वतंत्र रूप से कार्य करने देने के लिए आवश्यक कदम उठाने चाहिए।
ताराचन्द खोयड़ावाल
संस्थापक:- मजदूर विकास फाउंडेशन
संपादक:- प्रगति न्यूज़