मामले की जांच के लिए बनी समिति
सुप्रीम कोर्ट के चीफ़ जस्टिस (CJI) संजीव खन्ना ने इस मामले की जांच के लिए एक तीन सदस्यीय समिति गठित की है, जिसमें शामिल हैं:
- शील नागू – पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस
- जी.एस. संधावालिया – हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस
- अनु शिवरामन – कर्नाटक हाई कोर्ट की जज
यह समिति इस मामले की विस्तृत जांच करेगी और अपनी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंपेगी।
जस्टिस वर्मा के खिलाफ संभावित कार्रवाई
यदि समिति की रिपोर्ट में जस्टिस वर्मा के खिलाफ गंभीर सबूत मिलते हैं, तो उनके खिलाफ निम्नलिखित कानूनी प्रक्रिया अपनाई जा सकती है:
1. सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
- सुप्रीम कोर्ट की कॉलेजियम समिति इस मामले पर विचार करेगी।
- अगर समिति अनुशंसा करती है, तो जस्टिस वर्मा को न्यायिक कार्यों से स्थायी रूप से हटाने की प्रक्रिया शुरू की जा सकती है।
2. महाभियोग प्रक्रिया (Impeachment Process)
- यदि सुप्रीम कोर्ट की सिफारिश के बाद भी मामला गंभीर रहता है, तो इसे संसद में भेजा जा सकता है।
- संविधान के अनुच्छेद 124(4) और 217 के तहत, किसी हाई कोर्ट के जज को पद से हटाने के लिए महाभियोग प्रक्रिया अपनाई जाती है।
- संसद के दोनों सदनों में विशेष बहुमत से प्रस्ताव पारित होने के बाद ही जस्टिस वर्मा को उनके पद से हटाया जा सकता है।
क्या जस्टिस वर्मा को हटाया जा सकता है?
भारत में अब तक केवल एक ही न्यायाधीश (जस्टिस वी. रामास्वामी) के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाया गया था, लेकिन वह संसद में पारित नहीं हो सका था। यानी यह प्रक्रिया काफी कठिन और लंबी होती है।
जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ कार्रवाई समिति की जांच रिपोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर निर्भर करेगी। यदि उन पर लगे आरोप साबित होते हैं, तो यह मामला संसद तक जा सकता है और महाभियोग की प्रक्रिया शुरू हो सकती है। हालांकि, फिलहाल उन्हें केवल न्यायिक कार्यों से अलग रखा गया है और जांच जारी है।