दलित चिन्तक , विचारक , लेखक , डिक्की के कर्णधार व सूत्रधार: चन्द्रभान प्रसाद

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      देश में दलित विषयों पर बेबाक लेखन व टिप्पणी के लिए चन्द्रभान प्रसाद एक जाना पहचाना नाम है। वे हिंदी , अंग्रेजी अखबारों के लेखन व अक्सर टीवी पर शोषित वर्ग के हितों पर बहस करते नजर आते रहे हैं। 

      कई नामी पुस्तकों के रचियेता भी हैं लेकिन सबसे बड़ी उनकी डिक्की जैसे राष्ट्रीय संगठन को बनाने की है, आप डिक्की के कर्णधार सलाहकार व सूत्रधार हैं , बाबा साहब के दर्शन “नौकरी मांगने वाले नहीं नौकरी देने वाले बनो” पर चलते हुए इस सन्देश को हकीकत में बदल दिया। आज डिक्की के प्लेटफोर्म पर देश के कोने कोने से दलित उद्धमी एक मंच पर आकर बिजनेश में आगे बढ़कर तथा उभरते उधमियों को प्रोत्साहित कर चलने का मिशन चला रहे हैं। 

       चन्द्रभान जी व मिलिंद काम्बले के प्रयासों से देश के टाटा , गोदरेज  व देश के अन्य बड़े बिजनेसमेन ग्रुप दलित उधमियों को सहारा दे रहे हैं, केंद्र सरकार ने वेंचर केपिटल फण्ड का प्रावधान किया। 


       प्राइवेट सेक्टर में भागेदारी का इनकी मांग का असर दिख रहा है मुस्किल व विपरीत हालातों के बीच इन्होने डिक्की का जो बीज बोया था आज वह पौधा बनकर लहलाने लगा है फ़रवरी 2015 में हैदराबाद में एक भव्य व विशाल एक्सपो इसका बड़ा प्रमाण है


       महान विचारक चन्द्रभान प्रसाद का यह भी कहना है की दलितों को आजादी तो अंग्रेजी ही दिलाएगी इस लिए हर क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए अच्छी अंगेजी होना बहुत जरुरी है। यदि अम्बेडकर विदेशों में अंग्रेजी नहीं पढ़ते तो संविधान नहीं लिख पाते और न ही दलितों को मानवीय अधिकार मिलते। 


      पूँजी से जाती के बंधन भी ढीले पड़ जाते है इसलिए विचारक चन्द्रभान प्रसाद दलितों को पूंजीपति बनकर बुद्ध के मार्ग पर चलते हुए धनको मानव कल्याण हेतू खर्च करने के लिए भी याद दिलाते हैं , वे अम्बेडकर मिशन के वाकई सच्चे सिपाही हैं देश में डायवर्सिटी यानी हर क्षेत्र में दलितों आदिवासी पिछड़ों की भागेदारी का इनका मिशन अब धीरे धीरे आगे बढ़ने लगा है। देश के दलित बुद्धिजीवी लोग चन्द्रभान प्रसाद का एक शसक्त हस्ताक्षर है जो जातिवादी मानसिकता के लोग कथित बुद्धिजीवियों को तर्क के साथ जवाब देने का होसला रखते हैं, अब तो इनकी एक ही धुन है बस दलित लोग छोटेबड़े बिजनेस कर पूंजीपति बनें आर्थिक आजादी से खुशहाल जीवन जियें।


       चन्द्रभान प्रसाद की प्रतिभा, लेखकीय इमानदारी और वैचारिक प्रतिबद्धता के हम सभी कायल हैं ज्ञान व जानकारियों से से लबालब लेकिन बहुत ही सहज व सरल निजी और बौद्धिक जीवन में वे बेहद लोकतांत्रिक व्यक्तित्व के धनि हैं आप उनसे असहमत होइए लड़िये झगडिये उनका विरोध कीजिये वैचारिक मतभेद जाहिर कीजिये, वे कतई उसका बुरा नहीं मानते हैं चन्द्रभान जी अगर चार लोगों के बीच बैठे होंगे तो खुद के गुणगान की बजाय साथियों गुणगान करते नहीं थकते हैं। डिक्की के एक्सपो में सारे दिन हर स्टाल पर घूमते व बतियाते रहते हैं वी.आई.पी. लोगों को हर दलित उधमी के उघम को ऐसे बखान करते मनो खुद का कारोबार हो।


     दलितों की आर्थिक सामाजिक व सांस्कृतिक विकास से जुड़े मुद्दों के कार्यक्रम में ऐसे सक्रीय रहते हैं मानों खुद के घर का बड़ा आयोजन हो , तमाम तरह की आलोचनाओं को झेलते हुए डिक्की जैसे प्रतिष्ठित मंच को खडा करने के अपने काम में लगे रहे और यह संस्था आज राष्ट्रिय स्तर पर अपनी मजबूती के सतह अपनी पहचान पर खडी है , समाज व सरकार के साथ कोर्पोरेट जगत में भी डिक्की का डंका बजता है। चन्द्रभान जी की आजीविका का साधन केवल उनका लेखन और टीवी वार्ताओं में उनकी भागेदारी है जो कोई ख़ास नहीं होती हैं क्योंकि ये अधिकतर समय अब डिक्की व अन्य सामाजिक गतिविधियों में ही व्यस्त रहतें हैं।


      कई बाधाओं व आर्थिक मुश्किलों के बावजूद यह शख्स शोषित वर्ग के लिए हर वक्त लिखना , बोलना विचार करते रहना। चन्द्रभान जी अन्य लेखकों से बिलकुल अलग हैं ये लेखक के साथ प्रभावशाली एक्टिविस्ट भी हैं अपने सीमित दड़बे में न रहकर आम शोषित से लेकर रतन टाटा , आदि गोदरेज जैसे बड़े उद्ध्योगपति व आर्थिक मुद्दों पर बड़े राजनेताओं से आये दिन गंभीर विचार विमर्श करते नजर आते हैं , यदि यह कहा जाये की ये एक विद्वान , लेखक , बुद्धिजीवी , एक्टिविस्ट , मीडियाकर्मी और पूरी तरह से प्रक्टिकल पर्शन है तो कोई अतिश्योती नहीं होगी।


      मजेदार बात यह है की चन्द्रभान जी से सबसे ज्यादा उनके समुदाय के बौद्धिक लोग ही चिढ़ते हैं लेकिन बाबासाहब की मेहरबानी से सरकारी नौकरी में मोटी तनख्वाह लेने वाले इन बौद्धिक महानुभावों से यदि यह पुछा जाये की आप अपनी कमाई का कितना हिस्सा अपने समाज के लिए खर्च करते हैं , ऐसे लोग अपने धन , समय, हुनर का कुच्छ भी समाज को नहीं लौटाते हैं उल्टा दूसरों का पानी पी पीकर कोसते हैं रहते हैं।


      चन्द्रभान जी इसी तरह पोजिटिव सोच की एनर्जी के साथ मिशन में डटे रहते हैं, वे दलित थिंक टैंक के गौरव हैं और भविष्य में भी इनके विचार चिंतन व लेखन की धार यूँ ही बनी रहेगी।

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