जस्टिस राजेंद्र प्रकाश सोनी की बेंच आईपीसी की धारा 405 (विश्वासघात) और धारा 415 (धोखाधड़ी) के तहत आरोपी द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी। शिकायत के आधार पर दर्ज की गई एफआईआर के अनुसार आरोपी ने शिकायतकर्ता से ब्याज पर कर्ज लिया था और वह उसे चुकाने में नाकाम रहा।
याचिकाकर्ता के वकील ने हाईकोर्ट में दो महत्वपूर्ण दलीलें देते हुए कि यह विवाद पूरी तरह से दीवानी प्रकृति का था, जिसके लिए धन वसूली का मुकदमा दायर करने के बजाय, इसे आपराधिक अपराध का रंग देने की कोशिश की गई। दूसरा यह कि एफआईआर केवल लोन की रकम वसूलने के लिए याचिकाकर्ता को परेशान करने और दबाव डालने का एक तरीका थी।
हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता के वकील की दोनों दलीलों से सहमति जताई। कोर्ट ने इस बात पर प्रकाश डाला कि याचिकाकर्ता के खिलाफ एफआईआर का एकमात्र आधार लोन के रूप में दी गई रकम की वसूली थी।
कोर्ट ने माना कि केवल वादा, समझौते या कॉन्ट्रैक्ट का उल्लंघन आईपीसी के तहत आपराधिक विश्वासघात का अपराध नहीं बनता है, बिना किसी ऐसे मामले के जो केवल लोन के रूप में धन उधार देने से नहीं होता है। इसलिए आपराधिक विश्वासघात का अपराध नहीं बनता।
कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा लोन राशि वापस करने में असमर्थता मात्र इस अपराध के तत्वों को पूरा नहीं कर सकती, जब तक कि लेन-देन की शुरुआत से ही धोखाधड़ी या बेईमानी का इरादा नहीं दिखाया गया हो, जिसके परिणामस्वरूप शिकायतकर्ता द्वारा अनैच्छिक रूप से धन ट्रांसफर किया गया हो। इसके आधार पर हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता के खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द कर दिया।
राजस्थान हाईकोर्ट-जयपुर
अपर जिला एवं सत्र न्यायालय,मुण्डावर