मायावती की संजीवनी किसके लिए कर रही है काम?अपने अस्तित्व को बचाने का किससे है डर

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मायावती ने पिछले एक दशक में भाजपा से ज्यादा हमले कांग्रेस और सपा पर किए। भाजपा के दबाव में होने के विरोधियों के आरोपों को मायावती ने बेशक स्वीकार न किया हो पर चुनावी नतीजे इसका प्रमाण हैं। यह सही है कि बसपा सुप्रीमो और उनके भाई आनंद के खिलाफ आयकर, सीबीआइ और ईडी की कई जांचें लंबे समय से चल रही हैं। यह आरोप भी इसी वजह से लगे कि एजंसियों के दबाव में उनका रिमोट भाजपा के हाथ में रहा। मायावती ने 2014 का लोकसभा चुनाव अकेले लड़कर भाजपा को 73 सीटों पर सफलता हासिल करने में मदद की। इसकी पुष्टि 2019 में हो गई जब उन्होंने सपा से हाथ मिलाया और 38 सीटों पर चुनाव लड़कर दस पर सफलता पाई। फिर भी अगर बयान दिया कि सपा से तालमेल घाटे का सौदा था तो कुछ तो दबाव रहा ही होगा। इस बार के लोकसभा चुनाव में भी मायावती भाजपा के लिए संजीवनी साबित हुई। दो साल पहले हुए विधानसभा चुनाव उन्हें 13 फीसद वोट मिले थे पर सीट एक। इस बार वोट घटकर 9.39 फीसद रह गए और सीट एक भी हिस्से नहीं आई। बसपा के उम्मीदवारों के कारण भाजपा को 16 सीटों पर फायदा हुआ। बसपा के वोट इन सीटों पर इंडिया गठबंधन को मिल जाते तो भाजपा 14 सीटों पर ही सिमट जाती उत्तर प्रदेश में। अब मायावती का सियासी वजूद ही खतरे में है क्योंकि उन्हीं की जाटव बिरादरी के चंद्रशेखर आजाद दलितों के नए रहनुमा बनकर उभरे हैं।

ताराचन्द जाटव

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